प्रेमचंद कब "मुंशी" हुये और कैसे की रोचक कहानी।





प्रेमचंद कब "मुंशी" हुये और कैसे की रोचक कहानी।

 

  31 जुलाई सन1880 में हिंदी साहित्य के महान प्रवर्तक मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लिमही गांव में हुआ था। पहले उनको धनपत राय के नाम से भी जाना जाता था।प्रसिद्ध कहानीकार, उपन्यासकार, निबंधकार रहे है।आज उनके जन्मदिन पर एक लेखक द्वारा महान रचनाकार के बारे मे लिखना ही सही अर्थों में जन्मदिन मनाना है। सामाजिक बुराइयों जैसे  गरीबी, छुआछूत, दलित, बाल विवाह व विधवा विवाह आदि विषयों पर लिखे उनके लेखों में गजब का व्यंग दिखाई देता है। प्रेमचंद व कन्हैया लाल मुंशी ने "हंस पत्रिका" का संपादन भी किया था पत्रिका के संपादक मे कन्हैयालाल मुंशी की जगह केवल"मुंशी व  प्रेमचंद को इस प्रकार"मुंशी, प्रेमचंद" लिखा जाता था। क्योंकि दोनों ही पत्रिका के संपादक थे।  कालांतर में धीरे धीरे दोनों के बीच स्थित(,) अल्पविराम को हटाकर मुंशी प्रेमचंद ही पढ़ने  लग गए।इस प्रकार प्रेमचंद से मुंशी प्रेमचंद बन गये। प्रेमचंद जी 18 वर्ष की आयु में दसवीं कक्षा उत्तीर्ण करके ही अध्यापक की नौकरी प्राप्त कर ली थी।  उसके बाद लगातार उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।इंटर व स्नातक करने के बाद,वह शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त हुए थे।इनका साहित्य काल 1901 से 1936 तक का रहा था। इनकी पहली कहानी "बड़े घर की बेटी" दिसंबर 1910 में ज़माना पत्रिका मे प्रकाशित हुई थी। मूल रूप से हिंदी में कहानियां लिखना इन्होंने 1915 में शुरू किया था और अंत तक लिखते रहें‌ इनकी अंतिम कहानी "कफन" जो 1936 में लिखी मानी जाती है।इनका बचपन बड़ा संघर्षमय  बीता था। 7 वर्ष की आयु में इनकी माता व 14 वर्ष की आयु में इनके पिता का देहांत हो गया था।  स्वयं का विवाह भी 15 वर्ष की आयु में हो गया था। वह सफल नहीं रहा और बाद में उन्होंने बाल विधवा "शिवरानी देवी" से 1906 में दूसरा विवाह किया था। इनके दो पुत्र व एक पुत्री थी।इनकी ज्यादातर रचनाए  जनता की ग़रीबी, सांप्रदायिकता, जमीदारी, कर्जखोरी की कहानियां  रही है।इनका कहानी संग्रह "सोजे- वतन" 1908 में प्रकाशित हुआ था। सोजे-वतन मतलब "देश का दर्द" ।  देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत  इस कहानी संग्रह ने अंग्रेजों को बहुत बुरी तरह से डरा दिया था। अंग्रेजों ने सोचा कि अपने खिलाफ  भारतवासियों में  आक्रोश पैदा न हो जाए।इस डर से उन्होंने इस "सोजे -वतन" कहानी संग्रह पर रोक लगा दी थी। और भविष्य में इनको भी चेतावनी दी गई थी, कि इस तरह का लेखन आप नहीं करें। इसलिए बाद मे इन्होंने अपना नाम धनपत राय से  बदलकर प्रेमचंद कर लिया था।बाद का सारा साहित्य मुंशी प्रेमचंद के नाम से ही लिखा गया। इनको उपन्यास के सम्राट की उपाधि मिली हुई थी।ऐसे महान रचनाकार, उपन्यासकार , कहानीकार को मेरा यह मौलिक आलेख जन्मोत्सव पर  समर्पित करता हूं।

जय हिन्द,जय भारत।

 

लेखक के यह अपने विचार है, संपादक का सहमत होना आवश्यक नही है।

 


Tr हंसराज "हंस"


 

 




 


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