घर

मैं झूले वाली कुर्सी पर बैठा था, ये कुर्सी मुझे मेरे बेटे ने लाकर दी थी। मेरा बेटा, विवेक! कहा था पापा आपको बड़ा शौक था ना ऐसी कुर्सी का, तो बस अब आप आंनद लीजिए। मैं भी बड़ा खुश हुआ, दिल गदगद हो गया, मेरा छोटा सा बेटा कितना बड़ा हो गया। मोहल्ले भर के लोगों को बारी बारी से चाय पर बुलाता था ताकि उन्हें कह सकूं देखो ये झूले वाली कुर्सी मेरा बेटा लाया है। फिर उस कुर्सी पर बैठता और सबको झूलकर दिखाता। इस कुर्सी पर बैठने का उत्साह और सुकून आज भी बिल्कुल वैसा ही है, जैसा उस वक्त था।

       आज भी मैं इस कुर्सी पर बैठा झूलते हुए कुछ सोच रहा था कि मेरी नजर सिरहाने टंगी परिवारिक तस्वीर पर पड़ी। ये नए जमाने की पुराने फोटो से बनी तस्वीर थी। एक ही तस्वीर मे सब अलग अलग खड़े थे, कोई अकेला तो कोई अपने दो सदस्यों के परिवार के साथ। तस्वीर के निचले कोने मे लगी एक फोटो मे मैं भी था, अपनी जीवन संगिनी, बहु और बेटे के साथ। मैं तस्वीर निहारते हुए सोच रहा था, समय तो जैसे ठहर ही गया है। कि घर के दरवाजे पर खिलखिला कर हंसने की आवाज आई, आवाज जो मुझे कई साल पहले ले गयी, आवाज जिसने मुझे एक ही क्षण मे विवेक का पूरा बचपन याद दिला दिया, आवाज जिसने मेरे सोच मे पड़े रूखे होठों पर मुलायम ममतामयी मुस्कान ला दी। अब मैं रूखी और दुखी सोच से निकलकर प्रेम की दुनिया मे आ चुका था। मेरे होंठो पर मुस्कान और नज़रों मे इन्तज़ार था कि आखिर इतने सालों बाद कोन खिलखिलाया मेरे दरवाजे पर।
        दरवाजा खुला, और मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मेरी आंखे चमक उठी। एक प्यारा छोटा सा बच्चा। मैं उसे ठीक तरह से देखता तब तक तो वो दौड़ कर पीछे आँगन मे पहुंच चुका था। 
        बंद पड़े घर अपने समय में ही ठहर जाते है। मुझे लगा, मैं विवेक के बचपन मे आ चुका हूं। मैं उसके पीछे गया। आँगन मे, जालों मे लिपटी, धूल से सनी विवेक की छोटी सी साइकल को उठाते हुए उसने आवाज लगाई, पापा......! मैं पीछे मुड़ा और मेरे सामने विवेक खड़ा था। अब ना तो ये बंद पड़ा घर रहा और ना ही समय ठहरा हुआ। अब मुझे समझ नहीं आ रहा था अपने कदम आगे बढ़ाऊं या पीछे की तरफ भाग कर पोते को गले लगाऊँ!
        जब दोराहे की दोनों राहों पर खुशियां हो तो खुशियां चुनने मे हम समय लगा देते है। मैं असमंजस मे था, कि दरवाजे पर मुझे मेरी जीवन संगिनी दिखाई दी, मैं उसकी ओर बढ़ा, वो अंदर आई और पूरे घर को निहारने लगी। वो घर को देख रहीं थीं, और मैं उसे, इतने सालों मे कितना बदल गयी है वो, सफेद बाल, चेहरे पर झुर्रियां मगर आज भी उतनी ही खूबसूरत! उसकी नजर उसी परिवारिक तस्वीर पर पड़ी और देखते - देखते वो भरी आंखों से बोली, समय तो जैसे ठहर सा गया था! मैं उसके कन्धे पर हाथ रखता तब तक विवेक उसको सम्हालते हुए बोला - अब मत रोईए ना माँ! देखो, आपके कहने पर मैंने कोशिश करके यहां ट्रांसफर भी करवा लिया, आप चाहती थी ना कि मेरी हंसी से गूंजा ये घर आपके पोते की हंसी से भी गंजे, देखो, गूंज रहा है। अब बस आप इस पल का आनंद लीजिए।
मुझे यकीन है, पापा भी यदि हमे देख रहे होंगे तो बहोत खुश होंगे।
हाँ बेटा, मैं बहोत खुश हूं! तस्वीर का ये एक कोना, मेरे घर के कोने कोने मे जो बसा है। 

मरने के बाद भी खुशियां मिलती है, और यहीं खुशियां ये तय करती है कि मरने वाला स्वर्गीय है!

घर बोलता है तोतली बोलियां,
जिन्हें सुनोगे तो तुम हंस पड़ोगे।

            श्रद्धा जैन 
           मध्यप्रदेश 

1         यदि     आप स्वैच्छिक दुनिया में अपना लेख प्रकाशित करवाना चाहते है तो कृपया आवश्यक रूप से निम्नवत सहयोग करे :

a.    सर्वप्रथम हमारे यूट्यूब चैनल Swaikshik Duniya को subscribe करके आप Screen Short  भेज दीजिये तथा

b.      फेसबुक पेज https://www.facebook.com/Swaichhik-Duniya-322030988201974/?eid=ARALAGdf4Ly0x7K9jNSnbE9V9pG3YinAAPKXicP1m_Xg0e0a9AhFlZqcD-K0UYrLI0vPJT7tBuLXF3wE को फॉलो करे ताकि आपका प्रकाशित आलेख दिखाई दे सके

c.       आपसे यह भी निवेदन है कि भविष्य में आप वार्षिक सदस्यता ग्रहण करके हमें आर्थिक सम्बल प्रदान करे।

d.      कृपया अपना पूर्ण विवरण नाम पता फ़ोन नंबर सहित भेजे

e.      यदि आप हमारे सदस्य है तो कृपया सदस्यता संख्या अवश्य लिखे ताकि हम आपका लेख प्राथमिकता से प्रकाशित कर सके क्योकि समाचार पत्र में हम सदस्यों की रचनाये ही प्रकाशित करते है

2         आप अपना कोई भी लेख/ समाचार/ काव्य आदि पूरे विवरण (पूरा पता, संपर्क सूत्र) और एक पास पोर्ट साइज फोटो के साथ हमारी मेल आईडी swaikshikduniya@gmail.com पर भेजे और ध्यान दे कि लेख 500 शब्दों  से ज्यादा नहीं होना चाहिए अन्यथा मान्य नहीं होगा

3         साथ ही अपने जिले से आजीविका के रूप मे स्वैच्छिक दुनिया समाचार प्रतिनिधिब्यूरो चीफरिपोर्टर के तौर पर कार्य करने हेतु भी हमें 8299881379 पर संपर्क करें।

4         अपने वार्षिक सदस्यों को हम साधारण डाक से समाचार पत्र एक प्रति वर्ष भर भेजते रहेंगे,  परंतु डाक विभाग की लचर व्यवस्था की वजह से आप तक हार्डकॉपी हुचने की जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी। अतः जिस अंक में आपकी रचना प्रकाशित हुई है उसको कोरियर या रजिस्ट्री से प्राप्त करने के लिये आप रू 100/- का भुगतान करें