कालिका दर्शन

                                                    अतुल मल्लिक “अनजान”

फतेहाबाद (आगरा), उत्तर प्रदेश की संस्था ‘बृजलोक साहित्य कला संस्कृति अकादमी’ द्वारा मुकेश कुमार ऋषि वर्मा के संपादन में प्रकाशित “कालिका दर्शन” पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । सबसे पहले तो इस महत्वपूर्ण पुस्तक के प्रकाशन के लिए बृजलोक साहित्य कला संस्कृति अकादमी के प्रति आभार प्रकट करता हूं । उसके बाद कुशल संपादक मुकेश कुमार ऋषि वर्मा जी के प्रति भी आभार प्रकट करता हूं, कि आपने बहुत ही मनोयोग से इस पुस्तक का संपादन किया है । आपका संपादकीय बहुत सुंदर है । पुस्तक में माननीय जितेंद्र वर्मा  (भाजपा विधायक ), राम नारायण साहू राज (अध्यक्ष - राज रचना कला एवं साहित्य समिति रायपुर, छत्तीसगढ ), डाॅ. नवीन शंकर पाण्डेय  ( डाॅ. दया शंकर पाण्डेय शोध संस्थान- सुरहुरपुर, अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश ), डाॅ. नरेश कुमार सिहाग एडवोकेट (विभागाध्यक्ष एवं शोध निर्देशक - हिंदी विभाग, टांटिया विश्वविद्यालय, श्रीगंगानगर, संपादक - बोहल शोध मञ्जूषा), डाॅ. तुमुल विजय शास्त्री  ( संपादक - तुमुल तूफानी ) आदि के शुभकामना संदेश से सुसज्जित यह पुस्तक अपनी उपयोगिता को सार्थक करती है । वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. पी पी सिन्हा जी का आलेख ‘शिल्प कामगारों की समस्या’ एक मर्मस्पर्शी लेखनी है, जो पठनीय भी है । आशीष प्रताप सहनी की कविता ‘वोटों की खातिर’ एक अच्छी कविता है । देखिए एक पंक्ति -

“रतिया दिनवा उहे सोचे,
वोटवा कहां-कहां से पाई ।
परदेश से लोगन के बुलाई,
रुपया पैसा खूब लुटाई ।।”

    कितना सूक्ष्म अवलोकन किया है कवि ने चुनावी परम्परा का । डाॅ. सिकन्दर लाल जी का आलेख ‘धर्म का यथार्थ रूप’ एक प्रगतिशील आलेख है । सुनिता साईंनाथ की कविता “धड़कन” भी अच्छी कविता है, यह कविता एक प्रेम कविता है । कवियित्री इस कविता के माध्यम से अपने प्रेमी  (नायक ) को अपने पास बुला रही है, उसे धड़कन कह अपनी धड़कन का हाल सुना रही है । कवियित्री का यह प्रयास अच्छा है, बस जरूरत है सलीके से शब्द सजाने की । डाॅ. सत्यनारायण चौधरी जी की रचना भी मुझे अच्छी लगी। नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर की कविता ‘भक्तों की सरकार मां के दरबार’ भी रोचकता लिए हुए है। अवधेश कुमार निषाद ‘मझवार’ की कविता ‘बेटी हम शर्मिंदा हैं’ बहुत मार्मिक सृजन है। यह कविता पाठक को भीतर तक झकझोरती है । देखिए कविता की एक-दो पंक्तियां-

‘नहीं शर्म आती दरिंदों को
ना देंखे उम्र ना देंखे मासूमियत 
इनको तो अपने मतलब से मतलब 
क्या इनके घर में नहीं है बेटी ।’

‘जिस बच्ची पर जुल्म हुआ 
वो कितनी रोयी होगी
मेरा कलेजा फट जाता है 
तो उसकी मां कैसे सोयी होगी।’

      यह पूरी कविता भावविह्वल करती है, साथ ही साथ आक्रोशित भी करती है ।

 मुकेश कुमार ऋषि वर्मा के दो मुक्तक शामिल हैं और दोनों मुक्तक योग पर केंद्रित हैं, जो बेहतरीन हैं । विजय कुमारी सहगल की कविता ‘युवा’ अच्छी कविता है । .डाॅ मिथिलेश कुमार मझवार जी की कविता ‘मगर क्या करें’ एक रोचक कविता है। इस पुस्तक में मेरी भी एक कविता “जरा सोचना” संग्रहित है ।

     निष्कर्ष के तौर पर यह बात जरूर कहूंगा कि यह संग्रह पठनीय है, संग्रहणीय है। संपादक ने पूर्ण मनोयोग से पुस्तक का संपादन किया है । मैं ‘देहाती साहित्यिक परिषद्’ की ओर से प्रकाशक व संपादक दोनों को अशेष बधाई देता हूँ... जय साहित्य ! 

 मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
         आगरा 

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