ग़ज़ल


दौर  नाज़ुक   है  तमाशे  नहीं अच्छे   लगते।
अब  हमें  ढोल  नगाड़े   नहीं  अच्छे   लगते।

हाथ  में  हर   घड़ी  रहते   हैं नये मो  बाइल,
अब के बच्चों को खिलौने नहीं अच्छे लगते।

हौसलों  को  करो मज़बूत संभालो खुद को,
कुछ व्यवस्था  के इशारे  नहीं अच्छे  लगते।

दायरा  सोच का अपना   है बड़ा  पहले  से,
सोच  के  लोग यूँ  बौने   नहीं अच्छे  लगते।

अपनीहिम्मत पेसम्भलने कासलीक़ाहासिल,
इसलिए  आज  सहारे   नहीं  अच्छे  लगते।

हमीद कानपुरी


 









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