(पुस्तक समीक्षा ) :संवेदनशील कृति : काव्य दीप
और मेरा घर बना हो काँच का तो आपस में पथराव नहीं करना चाहिए  अन्यथा - तू भी बेघर मैं भी बेघर।" कितना कुछ कह जाता है, कवि का चिन्तन औचित्यपूर्ण हैं।संग्रह की एक कविता है "राह चलते", इस कविता की एक पंक्ति देंखे - "तुम नौकरी नहीं पा सकोगे  क्योंकि वहां सब भ्रष्ट हैं रिश्वत खोर हैं…
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(पुस्तक समीक्षा) सामाजिक विसंगतियों की खुली किताब है विनोद कुमार विक्की की मूर्खमेव जयते
व्यंग्य लेखन की दुनिया से मेरा रिश्ता बहुत करीबी है, यही वजह है कि इसकी लेखन  प्रक्रिया से मैं भलीभांति परिचित हूँ। किसी को हँसने के लिये मजबूर करना और अपनी बात उस हँसी के साथ उसके भीतर तक पहुँचा देना व्यंग्यकार की एक ऐसी खूबी होती है जो निश्चित ही हर लेखक के पास नहीं होती। इसी खासियत की वजह स…
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(पुस्तक समीक्षा) मैं कविता हूँ’
'मैं कविता हूँ'-युगीन पीड़ाओं की सार्थक प्रस्तुति-हरीलाल 'मिलन' कविता की रचनाधर्मिता काव्य की सतत सांस्कृतिक प्रक्रिया है जिसका सीधा सम्बन्ध जन-जीवन से है। जन और जीवन से अलग होकर कविता के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती। कविता से ही जन-जीवन का सांस्कृतिक विकास होता आया है। सामाजिक…
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(पुस्तक समीक्षा) वैज्ञानिक युग में भावुकता का घर-बार बनाते गीतकार श्री राजेन्द्र राजन
सुप्रसिद्ध गीतकार/कवि श्री नीरज जी ने एक साक्षात्कार में बड़े दुख के साथ कहा था-'कवि मंच' तो आजकल 'कपि मंच' हो गए हैं। उनका इशारा आज के कवि-सम्मलेन के गिरते स्तर की ओर था। अख़बारों की सुर्ख़ियों से लेकर द्विअर्थीय हास्य व्यंग्य, चुटकुलेबाज़ी से लेकर संचालक महोदय और कवयित्री के बीच होती …
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(पुस्तक समीक्षा) मूर्खमेव जयते युगे युगे(व्यंग्य संग्रह)
ऐसे समय में जब पुस्तक प्रकाशन का सारा भार लेखक के कंधो पर डाला जाने लगा है , दिल्ली पुस्तक सदन ने व्यंग्य , कहानी , उपन्यास , जीवन दर्शन आदि विधाओ की अनेक पाण्डुलिपियां आमंत्रित कर , चयन के आधार पर स्वयं प्रकाशित की हैं . दिल्ली पुस्तक सदन का इस  अभिनव साहित्य सेवा हेतु अभिनंदन . इस चयन में जिन ल…
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(पुस्तक समीक्षा) अधरों के बिस्तर पर गान सो गए...
हिन्दी साहित्य की व्यंग्य-वृहत् त्रयी के श्री रवीन्द्रनाथ त्यागी यशस्वी व्यंग्यकार रहे हैं। त्यागी जी व्यंग्य और कविता साथ-साथ लिखते रहे पर यह दुखद ही कहा जाएगा कि आज बहुत कम लोग ही इस तथ्य से परिचित हैं कि त्यागी जी जितने अच्छे व्यंग्यकार थे, उतने ही अच्छे कवि भी थे। उनके जीवन की सबसे बड़ी ट्रेजेडी…
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(पुस्तक समीक्षा) कहानियां सुनाती दादाजी की चौपाल
कहानियां सभी को अच्छी लगती है। दादी सुनाती है तो ओर भी लुभाती है । बोर हुई तो बच्चों को सुलाती है । मगर, कहानियाँ भाती और लुभाती सभी को है। कारण, इन में सरलता, रोचकता और सरसता कूट-कूट कर भरी होती है। 'दादाजी की चौपाल'- ऐसी ही कहानियों का अनमोल खजाना है । इस पुस्तक में 19 कहानियां संग्रहित…
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